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‘परिणीता’ कहानी त्याग और प्रणय के एक अलग ही आयाम को पाठकों के सामने प्रस्तुत करती है। कहानी ललिता और शेखर के इर्द-गिर्द घूमती नज़र आती है। अन्य कहानियों की भांति इस कहानी में भी शरतचंद्र ने एक साथ कई मुद्दों को पाठक के सामने रखा है फिर चाहे जात-पात हो, दहेज प्रथा हो या स्त्री जीवन का यथार्थ। परिणीता की यथार्थ संवाद शैली पाठकों को अंत तक बांधे रखती है।